अगर आप कभी कोर्ट के बारे में सुना है तो हाई कोर्ट का नाम भी जरूर आया होगा। लेकिन हाई कोर्ट के बारे में असली जानकारी कितनी लोगों को है? चलिए, सरल शब्दों में समझते हैं कि उच्च न्यायालय क्या है, इसकी संरचना कैसी होती है और ये कौन‑से मामले सुनता है।
उच्च न्यायालय की बुनियादी ढांचा
भारत में प्रत्येक राज्य (या दो‑तीन राज्यों के समूह) में एक उच्च न्यायालय होता है। ये कोर्ट राज्य के सबसे बड़े न्यायिक संस्थान होते हैं, जो जिला कोर्टों और मेट्रो कोर्टों के ऊपर आते हैं। मुख्य कार्य: संविधान के अनुसार कानून का सही‑सही पालन सुनिश्चित करना।
उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) होते हैं, जिसके बाद कई अतिरिक्त न्यायाधीश होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा, सुप्रीम कोर्ट की काउंसिल ऑफ जजेज़ के सुझाव पर की जाती है। प्रत्येक न्यायाधीश की उम्र 62 साल तक रहती है, जब तक वे रिटायर नहीं हो जाते।
केस सुनने की प्रक्रिया
जब आप किसी छोटे कोर्ट में अपना केस नहीं जीत पाते, तो आप अपील करके हाई कोर्ट में जा सकते हैं। हाई कोर्ट दो तरह के केस सुनता है:
अपील केस: नीचे के कोर्ट (जिला या मेट्रो) के फैसले को चुनौती देना।
डायरेक्ट ज्यूडिकेशन: सीधे हाई कोर्ट में केस दायर करना, जैसे मौजूदा कानून को चुनौती देना या अधिकारों की रक्षा के लिए पिटिशन फाइल करना।
हाई कोर्ट में केस की सुनवाई आमतौर पर दो चरणों में होती है – लिखित याचिका (पेटिशन) और फिर मौखिक सुनवाई (हियरिंग)। लिखित याचिका में आप अपना दावेदार बिंदु, सबूत और कानूनी आधार बताते हैं। हियरिंग में जज आपके वकील से सवाल पूछते हैं, और आप भी जज को अपने तर्क बता सकते हैं।
हाई कोर्ट का निर्णय दो प्रकार के होते हैं: फैसलो (राय) या ऑर्डर (निर्देश). फैसला आम तौर पर लिखित रूप में जारी होता है और इसमें न्यायिक कारण (रेज़निंग) स्पष्ट रूप से लिखे होते हैं। अगर आप इस फैसले से फिर भी संतुष्ट नहीं हैं, तो आप सुप्रीम कोर्ट में विशेष प्रवर्तन (Special Leave Petition) दायर कर सकते हैं, लेकिन यह बहुत कम मामलों में ही मंजूर होता है।
कभी‑कभी हाई कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र में विशेष मामलों के लिए पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) भी लेता है। इसका मतलब है कि कोर्ट सार्वजनिक हित में मामले सुनता है, जैसे पर्यावरण संरक्षण, मानव अधिकार या सरकार की नीतियों की वैधता। यह प्रक्रिया बहुत ही तेज़ और सुलभ हो सकती है, क्योंकि इसमें निजी पक्षों के बीच नहीं, बल्कि समग्र समाज के हित की बात होती है।
अगर आप हाई कोर्ट में केस दायर करना चाहते हैं, तो कुछ बेसिक कदम हैं:
सभी आवश्यक दस्तावेज़ तैयार करें – याचिका, सबूत, फ़ीस का रसीद।
एक योग्य वकील से मिलें, जो हाई कोर्ट में काम करने का अनुभव रखता हो।
कोर्ट की वेबसाइट या केश रजिस्टर में अपना केस नंबर ट्रैक करें।
निर्धारित तारीख पर कोर्ट में पहुँचे और जज के निर्देशों को ध्यान से सुनें।
हाई कोर्ट में केस फाइल करने की फीस केस की प्रकृति पर निर्भर करती है, लेकिन यह आम तौर पर थोड़ी महंगी हो सकती है। इसलिए फाइल करने से पहले लागत का एक अंदाज़ा लगा लें।
संक्षेप में, उच्च न्यायालय हमारे न्याय प्रबंध का एक अहम हिस्सा है। यह न सिर्फ निचले कोर्टों के फैसलों की जाँच करता है, बल्कि सीधे अधिकारों की सुरक्षा भी करता है। यदि आपके पास कोई ऐसा मामला है जिसमें आप महसूस करते हैं कि आप सच्चे या न्यायसंगत नहीं हो पाए, तो हाई कोर्ट आपके लिए एक मजबूत मंच हो सकता है।
फ़रवरी 15, 2023
शीर्ष अदालत पर हिमाचल उच्च न्यायालय के आदेश पर: यह लैटिन है?
हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत के आदेश पर एक विवेक जारी कर यह लैटिन है का आदेश दिया है। आदेश में कहा गया है कि सभी अधिकारीयों, विभागों और अन्य संस्थाओं को इस आदेश को पूरा करना होगा। आदेश में कहा गया है कि सभी अधिकारियों को यह संभव हो जाए कि उनके पास वर्तमान में जारी किए गए आदेशों को पूरा करने का समय हो। इसके अतिरिक्त, यह आदेश उच्च न्यायालय द्वारा गवाही दी गई है कि सभी राज्य की सरकारों और अधिकारियों को अपने आदेश को पूरा करने के लिए अधिक समय देना चाहिए।