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देश की शिक्षा व्यवस्था में इस तरह बड़ा बदलाव ला रहे हैं जावड़ेकर

Webdesk | Tuesday, December 13, 2016 7:10 PM IST

नई दिल्ली। शिक्षा को व्यापार में बदल चुके स्कूलों पर सरकार की पैनी नजर पड़ चुकी है। सरकार जानती है कि फीस इतनी बढ़ चुकी है कि आम आदमी के लिए इसे भरना मुश्किल होता जा रहा है। ऊपर से प्राईवेट स्कूलों में मंहगी किताबों बेचना, शिक्षकों का स्तर ठीक नहीं रखना जैसे तमाम हथकंडे अपनाने से शिक्षा न सिर्फ व्यापार में बदल रही है बल्कि स्तर भी बद से बदतर हुआ जा रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षा के इस व्यवसायीकरण को काबू में रखने के लिए कई विकल्पों को लागू करना शुरू भी कर दिया है। ये विकल्प भी ऐसे हैं जो आने वाले दिनों में सीबीएसई से संबंधित तमाम स्कूलों पर शिकंजा कस सकते हैं।

10 बोर्ड इम्तिहान फिर से शुरू

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने मंत्रालय का जिम्मा संभालने के बाद सबसे पहला काम ये किया कि 2018 से दसवीं की बोर्ड परीक्षाओं को फिर से शुरू करने का ऐलान कर दिया। यूपीए सरकार के दौर में मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने दसवीं की परीक्षा दें या ना दें का फैसला छात्रों पर ही छोड़ने का ऐलान कर दिया था। साथ ही 5वीं और 8वीं में नो डिटेंशन की नीति भी लागू कर दी थी। नतीजा आधे से ज्यादा दसवीं के छात्रों ने दसवीं के बोर्ड दिए ही नहीं। मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो राज्य और केंद्र को मिलाकर हर साल लगभग ढाई लाख छात्र दसवीं में पहुंचते हैं। इनमें से 2 लाख तीस हजार छात्र ही बोर्ड की परीक्षा दे पाते हैं। 20 लाख छात्र बोर्ड की परीक्षाओं में बैठ तक नहीं पाते।

ऐसे में छात्रों में प्रतियोगिता की भावना बनाए रखने के लिए जरूरी था कि बोर्ड की परीक्षा शुरू की जाए। जहां तक 5वीं और 8वीं की नो डिटेंशन नीति समाप्त करने का सवाल था, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फैसला राज्यों पर ही छोड़ा है। सूत्र बताते हैं सिर्फ तीन राज्य हैं जो इस नीति के तहत परीक्षा लेने के तैयार नहीं हैं। ये राज्य तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना है। बाकी सभी राज्यों ने इस नो डिटेंशन पॉलिसी को समाप्त करने का फैसला ले लिया है।

स्कूलों को लर्निंग आउटकम का नोटिस

दूसरा सबसे अहम फैसला है सीबीएसई के तमाम स्कूलों को लर्निंग आउटकम तैयार करने का नोटिस भेजा गया है। इसके तहत तमाम स्कूलों को बताना पड़ेगा कि हर क्लास में छात्र क्या पढ़ेगा और साल दर साल किस तरह उसकी पढ़ाई में वैल्यू एडिशन की जाएगी। इसकी रिपोर्ट भी सीबीएसई को देनी पड़ेगी। मंत्रालय को चिंता इस बात की थी कि सीबीएसई के स्कूलों में लर्निंग आउटकम की कोई व्यवस्था तक नहीं थी। सूत्रों की मानें तो तमाम स्कूलों को नोटिस भेज दिए गए हैं और लर्निंग आउटकम का सिस्टम एक दो महीने में नियम बन जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने तमाम सीबीएसई के स्कूलों को एक डिस्क्लोजर देने का नोटिस भेज दिया है। इसके तहत वो कितनी फीस ले रहे हैं और क्या उन्हें एनसीईआरटी की पुस्तकें पढाईं जा रहीं हैं या नहीं? जाहिर है फीस से लेकर पाठ्यक्रम सब पर तीखी नजर रखने के मूड में है सरकार।

शिक्षकों के स्तर में सुधार की कोशिश

तीसरी व्यवस्था जो मंत्रालय ने ठीक करने की शुरुआत की है- वो है शिक्षकों का स्तर सुधारने की। सरकार का मानना है कि स्कूल ज्यादा फीस ले रहे हैं लेकिन उस स्तर के शिक्षक रखने में कोताही बरत रहे हैं। सरकार ने तमाम बीएड कॉलेजों को नोटिस भेजा है। इन्हें वो तमाम आंकड़े भेजने को कहा है कि वो भविष्य के शिक्षकों को कैसी डिग्री और ट्रेनिंग दे रहे हैं। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में कुल 15000 पंजीकृत बीएड कॉलेज हैं। इनमें से 3000 ने अफीडेविट भेज भी दी है।

जाहिर है बिना विवाद के तमाम योजनाओं को अंजाम दिया जा रहा है और मंत्रालय इसी कोशिश में है कि धीरे धीरे तमाम बदलाव किए जाएं ताकि न सिर्फ छात्र बल्कि अभिभावकों को भी सहूलियत मिले। इसे तो मंत्रालय के सूत्र साइलेंट रिवॉल्यूशन बता रहे हैं।